भारत सरकार देश की ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, ऑटोमोबाइल उद्योग पर फ्लेक्स-फ्यूल (Flex-Fuel) इंजन टेक्नोलॉजी को अनिवार्य बनाने का दबाव तेज़ी से बढ़ा रही है। फ्लेक्स-फ्यूल वाहन वे हैं जो पेट्रोल, इथेनॉल या दोनों के मिश्रण (किसी भी अनुपात में) पर चल सकते हैं। इस कदम को देश की ईंधन आयात बिल को कम करने और कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने की एक महत्वाकांक्षी योजना के रूप में देखा जा रहा है। यदि यह नीति पूरी तरह से लागू होती है, तो यह भारत के ऑटोमोबाइल और ऊर्जा परिदृश्य में एक मौलिक बदलाव ला सकती है।
अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के लिए दोहरी जीत
फ्लेक्स-फ्यूल टेक्नोलॉजी अपनाने का मुख्य कारण इथेनॉल का उपयोग है। इथेनॉल मुख्य रूप से गन्ने, मक्का और चावल जैसे कृषि उत्पादों से तैयार किया जाता है। भारत में इसका उत्पादन बहुतायत में होता है। इथेनॉल के उपयोग से भारत की पेट्रोल आयात पर निर्भरता नाटकीय रूप से कम हो सकती है, जिससे देश के बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भंडार की बचत होगी। इसके अलावा, इथेनॉल एक स्वच्छ जलने वाला ईंधन है, जो पारंपरिक जीवाश्म ईंधन की तुलना में काफी कम ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है। यह भारत को अपने COP26 जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेगा। इस तरह, फ्लेक्स-फ्यूल एक ऐसी तकनीक है जो अर्थव्यवस्था और पर्यावरण, दोनों के लिए ‘जीत की स्थिति’ (Win-Win Situation) बनाती है।
ऑटो उद्योग और ग्राहकों के लिए चुनौतियाँ
फ्लेक्स-फ्यूल इंजन को व्यापक रूप से लागू करने के लिए ऑटोमोबाइल निर्माताओं को मौजूदा इंजन डिज़ाइन में महत्वपूर्ण बदलाव करने होंगे। इंजन के पुर्जों को इथेनॉल के संक्षारक (Corrosive) स्वभाव को झेलने के लिए अधिक टिकाऊ सामग्री से बनाना होगा, जिससे वाहनों की उत्पादन लागत में शुरू में वृद्धि हो सकती है। ग्राहकों के लिए, इथेनॉल की उपलब्धता और कीमत एक महत्वपूर्ण कारक होगी। सरकार को एक मजबूत इथेनॉल आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) और वितरण नेटवर्क सुनिश्चित करना होगा ताकि फ्लेक्स-फ्यूल को अपनाने में कोई बाधा न आए। हालांकि, इथेनॉल की कम कीमत से लंबी अवधि में ग्राहकों को परिचालन लागत में बड़ी बचत होने की उम्मीद है।
ऊर्जा स्वतंत्रता की ओर अगला कदम
फ्लेक्स-फ्यूल इंजन को अनिवार्य बनाना भारत की ‘ऊर्जा स्वतंत्रता’ (Energy Independence) की दिशा में एक साहसी और निर्णायक कदम है। यह नीति केवल वाहनों के इंजन को बदलने के बारे में नहीं है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को डीकार्बोनाइज़ करने और किसानों को एक नया आय स्रोत प्रदान करने के बारे में भी है। जैसे ही ऑटो निर्माता इस टेक्नोलॉजी को बड़े पैमाने पर अपनाना शुरू करेंगे, भारत उन चुनिंदा वैश्विक बाज़ारों में शामिल हो जाएगा जो स्थायी और आत्मनिर्भर परिवहन समाधानों का नेतृत्व कर रहे हैं। यह एक ऐसा बदलाव है जिसका प्रभाव हर भारतीय नागरिक की जेब और उसके वातावरण पर पड़ेगा

