गोपुरम क्या है और इसे कैसे बनाया जाता है? :भारत की प्राचीन वास्तुकला (Indian Architecture) में कई ऐसे अद्भुत और कलात्मक निर्माण हैं, जो न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं बल्कि हमारी संस्कृति की गहराई को भी दर्शाते हैं। इन्हीं में से एक है — गोपुरम (Gopuram)। अगर आपने दक्षिण भारत के किसी मंदिर का दर्शन किया है, तो आपने निश्चित ही उस मंदिर के प्रवेश द्वार पर बने ऊँचे, रंगीन और कलात्मक टॉवर को देखा होगा — वही गोपुरम कहलाता है।
गोपुरम क्या है?
गोपुरम एक विशाल और सजावटी प्रवेश द्वार टॉवर (Temple Gateway Tower) होता है, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारतीय मंदिरों में देखने को मिलता है। यह मंदिर की बाहरी दीवार के ऊपर बनाया जाता है और मंदिर के गर्भगृह (जहां भगवान की मूर्ति होती है) तक जाने का मार्ग दिखाता है।
संस्कृत में “गोपुरम” शब्द दो शब्दों से बना है —
- “गो” का अर्थ है “पवित्र” या “गाय”
- “पुरम” का अर्थ है “नगर” या “स्थान”
अर्थात गोपुरम वह स्थान है जो मंदिर के पवित्र नगर का द्वार होता है। यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि वास्तुकला का भी एक शानदार उदाहरण है।
गोपुरम का ऐतिहासिक महत्व
गोपुरम की परंपरा चोल, पांड्य, और विजयनगर साम्राज्य के समय से चली आ रही है। उस समय मंदिर सिर्फ पूजा का स्थान नहीं, बल्कि कला, संस्कृति और समाज का केंद्र हुआ करते थे।
हर राजा अपने शासनकाल में बने मंदिरों में विशाल गोपुरम बनवाता था ताकि उसकी शक्ति और भक्ति दोनों का प्रदर्शन हो सके। इसलिए गोपुरम सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि राजशाही और कला की पहचान भी बन गया।
गोपुरम की खासियतें
गोपुरम की खासियतें उसे दुनिया की किसी भी वास्तुकला से अलग बनाती हैं। आइए जानते हैं इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ —
- ऊँचाई:
अधिकांश गोपुरम 50 से लेकर 200 फीट तक ऊँचे होते हैं। कुछ मंदिरों में तो यह ऊँचाई 250 फीट से भी अधिक होती है। - रंगीन मूर्तियाँ:
गोपुरम पर देवी-देवताओं, पौराणिक पात्रों, जानवरों और अन्य प्रतीकों की मूर्तियाँ बनी होती हैं। इन्हें रंग-बिरंगे रंगों से सजाया जाता है। - स्तर (Tiers):
गोपुरम आमतौर पर कई स्तरों में बना होता है। हर स्तर पर छोटी-छोटी मूर्तियाँ और सजावट की जाती है, जो ऊपर जाते-जाते छोटी होती जाती हैं। - ऊपरी भाग (कलश):
सबसे ऊपर “कलश” या “शिखर” लगाया जाता है, जो मंदिर की दिव्यता का प्रतीक होता है।
गोपुरम कैसे बनाया जाता है?
गोपुरम बनाना एक अत्यंत जटिल और आध्यात्मिक प्रक्रिया होती है। इसे बनाने में महीनों या सालों तक समय लग सकता है।
1. स्थान और दिशा का चयन
मंदिर के मुख्य द्वार की दिशा वास्तु के अनुसार तय की जाती है — आमतौर पर यह पूर्व दिशा की ओर होती है। इसी दिशा में गोपुरम बनाया जाता है ताकि सूर्योदय की किरणें मंदिर के गर्भगृह तक पहुँच सकें।
2. आधार निर्माण (Foundation)
गोपुरम की नींव मजबूत पत्थरों और चूने से बनाई जाती है। पुराने समय में चूने, गुड़, और बेल फल के रस का मिश्रण “प्राकृतिक सीमेंट” के रूप में प्रयोग किया जाता था।
3. संरचना निर्माण (Structure Design)
नीचे का हिस्सा चौड़ा और ऊपर जाते-जाते पतला बनाया जाता है, जिससे इसका भार समान रूप से बंटे और यह लंबे समय तक स्थिर रहे।
4. मूर्तिकला और नक्काशी (Sculpting)
शिल्पकार पत्थर और मिट्टी पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तराशते हैं। इन्हें बहुत ही सूक्ष्मता से तैयार किया जाता है। इसके बाद इन्हें रंगों से सजाया जाता है।
5. रंगाई और सजावट (Painting & Decoration)
रंगाई के लिए प्राकृतिक रंगों और वनस्पतियों से बने पिगमेंट का प्रयोग किया जाता है। कुछ जगहों पर सोने की पत्तियों (Gold Foil) का भी इस्तेमाल होता है।
गोपुरम का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
- गोपुरम को मंदिर का द्वारपाल कहा जाता है।
- यह देवत्व का प्रतीक है जो भक्त को सांसारिक जीवन से आध्यात्मिकता की ओर ले जाता है।
- इसे देखने मात्र से मन में श्रद्धा और शांति का अनुभव होता है।
- कहा जाता है कि गोपुरम के नीचे से गुजरते हुए व्यक्ति का नकारात्मक ऊर्जा से शुद्धिकरण होता है।
भारत के कुछ प्रसिद्ध गोपुरम
मंदिर का नाम | स्थान | विशेषता |
---|---|---|
श्री रंगनाथस्वामी मंदिर | श्रीरंगम, तमिलनाडु | 239 फीट ऊँचा गोपुरम – दक्षिण भारत का सबसे ऊँचा |
मीनाक्षी अम्मन मंदिर | मदुरै, तमिलनाडु | रंगीन मूर्तियों और उत्कृष्ट नक्काशी के लिए प्रसिद्ध |
ब्रहदेश्वर मंदिर | तंजावुर, तमिलनाडु | चोल काल का अद्भुत वास्तु नमूना |
मुरुगन मंदिर | पलानी, तमिलनाडु | तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद् |
गोपुरम सिर्फ एक वास्तु नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा का प्रतीक है। यह बताता है कि हमारे पूर्वज कितने कुशल शिल्पकार और आध्यात्मिक दृष्टिकोण वाले थे। जब आप अगली बार किसी दक्षिण भारतीय मंदिर में जाएं, तो उस गोपुरम को ध्यान से देखें — हर रंग, हर आकृति, हर मूर्ति एक कहानी कहती है, जो हमारी सभ्यता और आस्था की गहराई को दर्शाती है।